उम्र छोटी सी थी प्यार कच्चा सा था ।
वो भी बच्ची सी थी मैं भी बच्चा सा था ।
उम्र थी बढ़ रही प्यार था बढ़ रहा ।
जाने क्या दास्ताँ था ख़ुदा गढ़ रहा ?
उसके रस्तों पे नज़रें बिछाने लगे ।
पीछे-पीछे यूँ ही आने जाने लगे ।
उसको न थी ख़बर हम थे पागल मगर ।
कर ली एक थी, अपनी उसकी डगर ।
साल दर साल, यूँ ही गुज़रता गया
प्यार मेरा और भी उससे बढ़ता गया ।
वक़्त बीता ज़रा, मैं हुआ कुछ बड़ा,
वो तो थी बेख़बर, मैं था ज़िद पे अड़ा ।
अपनी चाहत उसे मैं जताता रहा ।
आँखों आँखों में सबकुछ बताता रहा ।
धीरे 2 उसे हो रही थी ख़बर ।
जाने कब उसने मेरी पढ़ ली थी नज़र ।
करके हिम्मत बड़ी उससे कुछ बात की ।
थी ग़नीमत बुरा उसने माना नहीं ।
फिर जो हिम्मत बढ़ी तो बढ़ा सिलसिला ।
ढूँढ कर मौके मैं बात करने लगा ।
उसके दिल में प्यार अब तक था शायद नहीं ।
कर नहीं पा रही थी या शायद यकीं ।
बातें होती तो थी बात वो पर न थी ।
पास वो थी बहुत साथ वो पर न थी ।
मुझे अपनी मोहब्बत पे ऐतबार था ।
एकतरफ़ा सही ये मेरा प्यार था ।
उसके था मैं क़रीब, था मुझे ये सुकूँ ।
सोचता था मगर आगे अब क्या करूँ ।
छोड़ अपना शहर दूर था जा रहा ।
अब उसे भी शायद कुछ था होने लगा ।
फिर यूँ ही बातों बातों में इक़रार हुआ ।
अब उसको भी मुझसे था प्यार हुआ ।
अब जुदाई की घड़ियाँ लम्बी लगने लगीं ।
मुश्किलें भी इधर थी और बढ़ने लगीं ।
मन ही मन में मगर मान रखा था ये ।
होगी बस वो मेरी ठान रखा था ये ।
अपने अपनों को हमनें मनाया बहुत ।
जज़्बा दोनों ने बेहद दिखाया बहुत ।
साथ अपने हुए और हमने सब पा लिया ।
सालों की चाहत को इस मुक़ाम पे ला लिया ।
सात जन्मों का अपना हुआ साथ है ।